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लेखनी प्रतियोगिता -10-Sep-2022 अनुभव का कोई मोल नही



शीर्षक = अनुभव का कोई मोल नही



माँ पापा को समझाओ ना की वो मेरे कहने पर एक बार मेरे तरीके से फसल ऊगा कर तो देखे, देखो मैं शहर से पढ़ कर आया हूँ और मैने पढ़ाई भी तो कृषि संभंधित विषय से की है, इसलिए माँ, पापा से कहो की अब खेत की ज़िम्मेदारी मुझ पर छोड़ दें देखना कुछ ही दिनों में मैं केसा उस ज़मीन से सोना निकलवाता हूँ अपनी पढ़ाई का इस्तेमाल कर " सुधाकर ने अपनी माँ जमना से कहा सुधाकर कुछ दिन पहले ही क़ृषि विज्ञानं में स्नातकोत्तर करके शहर से वापस लोटा है और अब वो ph. D करने की तैयारी कर रहा है

किन्तु सुधाकर इतने साल शहर रहकर शहर वालो की तरह पैसे का लालची हो गया है इसलिए वो अपने पिता से गांव की प्राकर्तिक खाद और दवाओं का उपयोग ना करने के बजाये शहर से केमिकल युक्त खाद और दवाओं का उपयोग करने को कह रहा है ताकि फसल ज्यादा और अच्छी उग सके जिससे की मुनाफा ज्यादा हो सके


"बेटा तू जानता तो है अपने पिता को वो कभी भी अपने खेत की मिट्टी को शहर की उन केमिकल युक्त दवाओं और खाद से गन्दा नही करेंगे और ना ही वो कभी दो पैसे ज्यादा कमाने के खातिर किसी की भी जान के साथ खिलवाड़ नही करेंगे भले ही शहर वालो के दिलों से ईश्वर का खौफ चला गया हो किन्तु हम गांव वाले हमेशा अपना कोई भी काम ईश्वर को हाजिर नाज़िर करके करते है क्यूंकि हमें ऊपर जाकर ईश्वर को मुँह भी दिखाना है इसलिए बेटा तू भी अपने पिता की बात मान ले उन्हें आज से नही ज़माने से खेती बाड़ी का अनुभव है वो आज से खेत और उसमे फसल नही ऊगा रहे वो जब तुझसे भी छोटे थे तब से अपने खेत से जुड़े हुए है उनका अनुभव तेरे उस किताबी ज्ञान से बहुत ज्यादा है भले ही आज कल का युवा अनुभव नामी चीज का कोई मोल नही समझता और किताबी ज्ञान को ही सब कुछ समझता है लेकिन बेटा याद रखना ये किताबें भी अनुभव के बाद ही लिखी गयी है।


भले ही तुम्हारे पास डिग्री है जो बताती है की तुमने क़ृषि विज्ञानं में महारात हासिल कर ली है लेकिन बेटा तुम्हारे पिता जी और यहाँ मौजूद हर गांव वाला तुमसे ज्यादा समझ और बूझ रखता है क्यूंकि जो शिक्षा तुमने पंखो में बैठ कर अपने टीचर से ली है उसी चीज का अनुभव तुम्हारे पिता ने तपती धूप, बरसते बादल और कड़कड़ाती ठण्ड में खेतो की जूताई, बुआयी और कटाई तक़ अपने हाथो से की है वो जानते है की उनकी ज़मीन को कब और क्या देना चाहिए और ये सब उन्होंने खेत में काम करने से ही सीखा है जिसे अनुभव कहते है इसलिए बेटा तुम भूल जाओ की तुम अपने खेत में जेहरीले केमिकल मिलाकर अधिक फसल ऊगा कर ज्यादा मुनाफा कमा सकते हो, हमें हमारी मेहनत और ईमानदारी का जितना दाम मिल रहा है बहुत है हमारे लिए हम किसी की जिंदगी के साथ खिलवाड़ करके अपना महल नही खड़ा करना चाहते हमारी ये कुटिया ही महल जैसी है जिसमे जरूरत का हर समान है " जमना जी ने अपने बेटे की बात का जवाब देते हुए कहा


शायद इसी लिए कभी गांव के लोग तरक्की नही कर सकते क्यूंकि वो समय के साथ बदलना ही नही चाहते पूरी जिंदगी कुए का मेढ़क बन गुज़ार देते है। माँ आपको बताता चलू की जो भी दवाये और खाद वैज्ञानिको ने बनायीं है वो इसलिए ही बनायीं है ताकि किसान उनसे फायदा उठा सके और अधिक से अधिक फसल ऊगा कर ज्यादा मुनाफा कमा सके लेकिन माँ  तुमभी पिता जी को समझाने के बजाये मुझे ही समझा रही हो जबकी जानती हो की मैं एक पढ़ा लिखा क़ृषि विज्ञानं और उससे  जुडी बातों को पढ़ कर स्नात्तकोत्तर की डिग्री तक पंहुचा हूँ जबकी पिता और उनके साथ ये गांव वाले सब अनपढ़ गँवार है उन्हें क्या पता ज़मीन को किस समय किस पोषक तत्व की ज़रुरत है और कौन से पोषक तत्व की वजह से उनकी फसल ख़राब हो रही है और यही वजह है की हर साल किसानो को कितना नुकसान हो जाता है इसलिए माँ आप पापा को समझाओ और उनसे कहो की गांव की खाद और दवाओं को एक तरफ रख दो और शहर जाकर मेरे अनुसार जो कुछ मैने सीखा है उसके अनुसार फसल उगाये देखना कितनी अच्छी और ज्यादा फसल उगेगी।


"इस बात की क्या गारंटी है की उन दवाओं से उगी फसल अच्छी के साथ साथ पोष्टीक भी होगी और उन केमिकल दवाओं और खाद का असर ज़मीन पर नही होगा, उससे उगी सब्जियों को खा कर किसी को कोई बीमारी नही लगेगी " अपने बेटे की बात काटते हुए नरोत्तम जी घर के अंदर घुसे

अपने पिता के इस तरह अचानक आ जाने पर और सवाल पूछने पर सुधाकर थोड़ा घबरा गया

"क्या हुआ बेटा चुप क्यू हो गए तुम्हारे पापा कुछ पूछ रहे है " जमना जी ने कहा


सुधाकर अपनी चुप्पी तोड़ कर अपने पिता की तरफ देख कर बोला " पापा हमें सिर्फ फसल चाहिए और उससे होने वाला मुनाफा उसके बाद वो फसल किसी को नुकसान दे या फायदा हमें इससे क्या और हा ज़मीन पर भी कुछ ज्यादा असर नही होगा "


"नही बेटा मैं ऐसा खेल नही खेलूंगा ना तो मेरा ज़मीर ( अंतरात्मा ) इज़ाज़त दे रहा है और ना मेरा अब तक का अनुभव ये कहता है की ये धांधली करना लोगो की सेहत के साथ अच्छा होगा। हम ईमानदार लोग है जो उगाते है अपनी मेहनत से उगाते है जो खाद और दवा हम लगाते है अपनी फसल को वो एक दम प्राकर्तिक गाय भैंस के गोबर और घर के गीले कचरे से बनी होती है और तो और केंचूए भी हमारा साथ देते है जब प्रकर्ति ही हमें सहारा दे रही है तब हमें लोगो की ज़िन्दगीयों से खिलवाड़ कर केमिकल युक्त पदार्थ इस्तेमाल करने की क्या आवश्यकता अपने साथ साथ धरती माँ को भी कष्ट देने की उनकी उर्वरता और उपजाऊ पन ख़त्म करने की " नरोत्तम जी ने कहा


दोनों बाप बेटों में काफी देर बहस चली  एक और किताबी ज्ञान था तो दूसरी  और सालों से खेतो में काम करने का अनुभव वाला, सुधाकर  नयी नयी तकनीक लगा कर अधिक फसल उगाना चाहता था  जबकी नरोत्तम जी अपने इतने सालों के अनुभव के भरोसे अपने खेत को अपने हिसाब से ही चलाना चाहते थे  वो किसी भी प्रकार की तकनीकी और केमिकल युक्त मदद नही लेना चाहते थे  वो पूरी तरह से प्रकर्ति पर निर्भर रहना चाहते थे  जैसा उनका अनुभव कहता था  भले ही आज कल इस तकनीकी दौर में अनुभव का कोई मोल नही रह गया इंसान दिन बा दिन मशीन का गुलाम होता जा रहा है सिंचाई के लिए अपने खेतो में ट्यूब वेल और जूताई के लिए ट्रेक्टर का इस्तेमाल कर रहा है  जिसके चलते  बहुत सारे ऐसे छोटे छोटे जीव जैसे केंचूए  ट्रेक्टर के पहिये के नीचे आकर मर जाते है  तो वही दूसरी तरफ बेलो से जूताई करने पर मिट्टी में पनप रहे जीव सुरक्षित रहते है । यही कारण है  की दोनों बाप बेटों में काफी देर बहस चली  और अंत में ये फैसला लिया गया  की उन की कुल ज़मीन जो 4 बीघा है  उसमे से दो बीघा ज़मीन पर नरोत्तम जी खेती करेंगे  अपने वही पुराने अनुभव और प्राकर्तिक संसाधनों द्वारा और बाकी 2 बीघा ज़मीन पर सुधाकर  अपनी पढ़ाई लिखाई के बलबूते खेती करेगा ।


दोनों इस बात पर राज़ी हो गए , गर्मीया आने को थी इस लिए दोनों ने फैसला लिया की वो इस बार सिर्फ और सिर्फ हरी सब्जियाँ ही उगाएंगे  जैसे की लोखी, तुरई, भिंडी , काशिफल और भी गर्मी की सब्जियाँ।


अगले दिन से ही नरोत्तम जी ने अपने बेलो को खोला और जैसा अब तक़ करते आ रहे थे वैसा ही क्या बेलो की सहायता से खेत जोत दिया वही  सुधाकर ने किराय का ट्रेक्टर लेकर एक दिन में ही सारा खेत जोत दिया

उसके बाद दोनों ने अपने अपने तरीके से सिंचाई की और बाजार से अच्छी और उम्दा किस्म के बीज लाकर बो दिए ।

नरोत्तम जी अपने पुरखो द्वारा सिखाई गयी  कृषि प्रणाली के तहत अपने खेत में उग रही फसल की देखभाल करते  जरूरत पड़ने पर घर पर बनायीं हुयी दवाओं का प्रयोग करते जिनका असर मनुष्य पर नही होता तो वही सुधाकर जो की कृषि से स्नात्तकोत्तर किए हुए था और अपनी पढ़ाई और किताबी ज्ञान पर उसे बहुत घमंड था  इसलिए उसने ना जाने कौन कौन से केमिकल अपनी फसल पर छिड़कना शुरू कर दिए जिससे की उनमे बहुत ज्यादा फूल आये और अधिक से अधिक सब्जी प्राप्त हो सके।


धीरे धीरे समय बढ़ने लगा  दोनों के खेत लहलहाने लगे  नरोत्तम जी अपने अनुभव के बल पर अपने खेत को दाना पानी देते तो वही  सुधाकर  किताबों से पढ़ कर और शहर की दुकानों से राय लेकर

उसी के साथ साथ उसने अपनी फसल को गांव की मंडी में ना बेच कर शहर के भिन्न भिन्न होटल और रेस्टोरेंट में बेचने की युक्ति बनायीं जिससे की उसे उसकी फसल का मुनाफा अधिक से अधिक मिल सके 

उसने शहर में सब्जियों को कृत्रिम रूप से बढ़ाने के बारे में भी सुना था इसलिए उसने अपनी सब्जियों को भी बड़ा करने के लिए उनमे केमिकल लगाना शुरू कर दिया ताकि वो वजन में और देखने में अच्छी लगे ।


नरोत्तम जी ने अपनी सारी सब्जियाँ काट ली और उन्हें गांव की मंडी में ही बेच दिया और जो मुनाफा हुआ उसे घर आयी लक्ष्मी समझ कर अपनी पत्नि जमना को दे दिया और ईश्वर का शुक्रिया अदा किया लेकिन वही दूसरी तरफ  सुधाकर  सारी सब्जी तोड़ कर जो की देखने में बहुत अच्छी लग रही थी जबकी वो सब  केमिकल का कमाल था  और जिस तरह की खाद उसने डाली थी । वो उसे ले जाकर शहर में बेच आया जिसका उसे बहुत मुनाफा हुआ। वो बहुत खुश था  की उसने अपने पिता के अनुभव को मात देदी थी ।


एक हफ्ता गुज़र गया था । तब ही सवेरे सवेरे नरोत्तम जी के दरवाज़े पर किसी की दस्तक हुयी जमना जी ने दरवाज़ा खोला तो दंग रह गयी  दरवाज़े पर दो पुलिस वाले और एक काला कोट पहने आदमी खड़ा  था  और उनसे उनके बेटे सुधाकर के बारे में पूछ रहे थे।


सुधाकर जैसे ही कमरे से बाहर आया सामने पुलिस को देख डर गया  कोट पेंट पहना आदमी बोल पड़ा  " साहब यही वो आदमी है जिसने हमें वो सब्जी बेचीं थी  जिसको पकाने के बाद लोगो ने खाया तो उनकी हालत ख़राब हो गयी  हमने जब वो सब्जी लेब भेजी तो पता चला की उनमे ज़रूरत से ज्यादा केमिकल मिला हुआ था जो इंसानी जान के लिए किसी ज़हर से कम नही है  यही वो आदमी है जिसने हमें सब्जियाँ बेचीं थी और लोग अब अस्पताल में बीमार पड़े जिंदगी और मौत से लड़ रहे है  "


ये सुन कर पुलिस  ने फ़ौरन सुधाकर को पकड़ लिया और गाड़ी में बैठा लिया और आगे की कार्यवाही कोर्ट जाकर होगी ये कह कर चला गया ।

नरोत्तम जी के घर में तो मातम सा छा गया , दो दिन बाद कोर्ट में पेशी हुयी जिसमे सुधाकर ने सब कबूल कार लिया की किस तरह उसने अपने पिता के अनुभव और सालों की मेहनत का कोई मोल नही समझा  और सिर्फ और सिर्फ अपने किताबी ज्ञान को ही महान समझने लगा जिसका खामयाज़ा मैं भुगत रहा हूँ मैने लालच में आकर ज़रुरत से ज्यादा केमिकल युक्त चीज़े अपने खेत में डाल दी थी जिसका परिणाम आप सब के सामने है  आज मैं कातिल बन गया हूँ।

खेर उन केमिकल से कोई मरा तो नही था अलबत्ता उनकी सेहत पर बहुत बुरा असर हुआ था जिसके चलते कोर्ट ने सुधाकर को एक साल की कैद सुनाई  और 10 लाख का जुर्माना डाला और भविष्य में कभी भी इस तरह की हरकत ना करने की चेतावनी दी।

आज सुधाकर को अपनी माँ और पिताजी दोनों की बात समझ आ गयी थी  की अनुभव को कभी कम नही समझना चाहिए  सिर्फ किताबें पढ़ लेने से कोई उस काम में निपुण नही बन जाता किसी भी काम में निपुण बनने के लिए उसका अनुभव होना बहुत जरूरी है  उसकी एक गलती की वजह से उसे कितना नुकसान हुआ उसी के साथ साथ धरती माँ को कितना कष्ट सहना पड़ा केमिकल ने उनकी सारी उर्वरता उनसे छीन ली और तो और कितने लोग मौत के मुँह में चले गए । उसके पिता ने अपने अनुभव और सूझ बूझ के चलते  कम ही सही लेकिन बिना किसी को नुकसान पहुचाये  पैसे कमाए  सच में उसके पिता का अनुभव बेमोल है  जिसकी कोई कीमत नही लगायी जा सकती है  उसे सिर्फ और सिर्फ सीखा जा सकता है 




प्रतियोगिता हेतु लिखी कहानी 

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16 Comments

Palak chopra

12-Sep-2022 09:22 PM

Bahut khoob 🙏🌺

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Priyanka Rani

12-Sep-2022 04:32 PM

Nice post

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Kaushalya Rani

12-Sep-2022 03:37 PM

Beautiful

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